विनोद खन्ना और केमेस्ट्री के केटालिस्ट

लेखक- संजय दुबे

feature-top

 

 केमेस्ट्री या हिंदी में रसायन शास्त्र को जानने वाले एक शब्द से बेहतर वाकिफ होते है ,ये शब्द है उत्प्रेरक अंग्रेजी में इसे केटालिस्ट कहा जाता है। रसायन शास्त्र में उत्प्रेरक शब्द रसायनिक क्रियाओं को बढ़ाने वाला होता है। उत्प्रेरक, अकेले कुछ काम करे तो सफलता मुश्किल होती है लेकिन किसी के साथ मिल जाए तो सफलता की गारंटी होती है। 

बॉलीवुड में भी अनेक कलाकार उत्प्रेरक की भूमिका में रहे और अन्य कलाकारों के साथ मिलकर ऐसी सफल फिल्मे दी जिन्हे देख कर लगता है कि अगर ये कलाकार नही होता तो फिल्म बेजान हो जाती।

विनोद खन्ना, ऐसा ही उत्प्रेरक कलाकार थे जिन्होंने तीन टुकड़ों में अपने फिल्मी जीवन के सफर को तय किया। भौतिक सुख की दुनियां से निकल कर आध्यात्म में भी गए और वापस भी लौटे ।फिल्मों की दुनियां से राजनीति में भी गए और सफलता कमोबेश उन्हे मिलती रही।फिल्मों में वे ऐसे व्यक्तित्व रहे जिन्होंने एक बार पटरी भी बदली और उन्ही के तौर तरीके से आगे शत्रुघ्न सिन्हा और शाहरुख खान निगेटिव भूमिका का चोला उतार कर खलनायक से नायक बने।

 विनोद खन्ना का फिल्मी जीवन,सुनील दत्त की फिल्म मन का मीत नामक फिल्म से 1968में शुरू हुई । जल्दी वे समझ गए कि नायक बनना कठिन काम है इस कारण वे खल नायक की भूमिका स्वीकार कर नए आयाम को छूने लगे। 1969में राजेश खन्ना की फिल्म "सच्चा झूठा" से विनोद खन्ना ने खल नायकी शुरू की ओर अगले छः साल तक उनकी नकारात्मक भूमिका का जलवा बॉलीवुड में छाया रहा। जिन लोगो ने मेरे अपने,आन मिलो सजना,पूरब पश्चिम,मेरा गांव मेरा देश, कच्चे धागे, अनोखी अदा पत्थर और पायल, हाथ की सफाई फिल्म देखी होगी वे जानते होंगे कि विनोद खन्ना किस बला के नाम थे। 1974में एक फिल्म आई "इम्तिहान"। ये फिल्म ब्रिटिश फिल्म To sir,with love की रीमेक थी।इस फिल्म से विनोद खन्ना के फिल्मी जीवन ने यूं टर्न लिया। "इम्तिहान"फिल्म विनोद खन्ना की भूमिका के अलावा एक अविस्मरणीय गाने "रुक जाना नही तू कही हार के"के कारण भी चर्चित हुई थी। मजरूह सुल्तानपुरी का लिखा ये गीत आज भी प्रेरणास्पद है।

 अब बात आती है कि बॉलीवुड में केटालिस्ट की। विनोद खन्ना ऐसे ही केटालिस्ट रहे। उनके हीरो रूपी फिल्मे उंगलियों में गिनने लायक रही। एक फिल्म थी इंकार और दूसरी थी लहू के दो रंग। इसके बाद विनोद खन्ना सहनायक के रूप में अमिताभ बच्चन के साथ आए तो हेरा फेरी,अमर अकबर एंथनी,खून पसीना, जमीर, परवरिश, और मुकद्दर का सिकंदर ने सफलता के झंडे गाड़ दिए। सुनील दत्त के साथ नहले पे दहला, फिरोज खान के साथ कुर्बानी और दयावान , ऋषि कपूर के साथ चांदनी जैसी फिल्मों में विनोद खन्ना की उपस्थिति ने उत्प्रेरक का ही काम किया था।

1982से1987के पांच साल विनोद खन्ना रजनीश के आश्रम में रहे और वापस आए तो इंसाफ और सत्यमेव जयते जैसी सफल फिल्मे दी। 

अपने बेटे अक्षय खन्ना के लिए हिमालय पुत्र बनाई। आगे वे भारतीय जनता पार्टी से1998में गुरदासपुर से सांसद निर्वाचित भी हुए और अटल बिहारी वाजपेई की सरकार मे। संस्कृति और पर्यटन और विदेश राज्य मंत्री बने।

 1968से1974,1982से1987और 1987से 1998के तीन टुकड़ों में विनोद खन्ना खलनायक, सह नायक और राजनीतिज्ञ बने।

मुझे उनकी इंकार फिल्म बहुत अच्छी लगी थी ।ये एक सस्पेंस थ्रिलर फिल्म थी।इस फिल्म में विनोद खन्ना राशन इंस्पेक्टर(महाराष्ट्र में खाद्य निरीक्षक को राशन इंस्पेक्टर कहा जाता है, तब के समय में राशन कार्ड के लिए आवदेन करने पर राशन इंस्पेक्टर घर में जाकर परिवार के सदस्यो का भौतिक सत्यापन किया करता था।) बन कर विलेन का पता लगा लेते है। इंकार फिल्म ने मुंगडा मुंगड़ा गाने ने लता मंगेशकर और आशा भोसले की बहन उषा मंगेशकर को चर्चित कर दिया था।


feature-top